हमें ग़ुस्सा क्यों आता है ?

कु लोगों को औरों की अपेक्षा जल्दी ग़ुस्सा आता है और कई लोगों को तो इतना तेज़ ग़ुस्सा आता है कि वो सभ्यता की सभी सीमाएं लांघ जाते हैं.एक नए शोधकार्य का निष्कर्ष है कि कुछ लोगों को ऐसा ग़ुस्सा उनके मस्तिष्क में कुछ ख़राबी की वजह से आता है.अमरीकी मनोवैज्ञानिकों की राय में ग़ुस्से में नियंत्रण खो बैठने वाले लोग, या वो पुरुष जो अपनी पत्नी के साथ हिंसक व्यव्हार करते हैं, अपने मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन की वजह से ऐसा करते हैं.एक लंबे अरसे से डॉक्टर ये भी कहते रहे हैं कि सिर पर लगी चोटें भी इस प्रकार के ग़ुस्से का एक कारण हो सकती हैं.लेकिन पहली बार अनियंत्रित ग़ुस्से को मस्तिष्क के काम करने के तरीक़े से जोड़ कर देखा जा रहा है.अमरीका में चिलड्रेन्स हॉस्पिटल ऑफ़ फ़िलेडेल्फ़िया के वैज्ञानिकों ने इस बारे में एक महत्वपूर्ण खोज की है.इन वैज्ञानिकों ने ऐसे मनोरोगियों के मस्तिष्क का अध्ययन किया जो इंटरमिटंट एक्सप्लोज़िव डिसऑर्डर (आईईडी) से पीड़ित हैं.इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को अनजाने में अनियंत्रित ग़ुस्सा आ जाता है. कई बार हम देखते हैं कि भीड़ भरी गाड़ी में या लंबी क़तार में लगे कुछ लोग आसानी से अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं और हाथापाई पर भी उतर आते हैं.कहा जा सकता है कि ऐसे लोग इसी प्रकार की बीमारी से पीड़ित होते हैं.चिलड्रेन्स हॉस्पिटल ऑफ़ फ़िलेडेल्फ़िया के वैज्ञानिकों के इस दल के प्रमुख डॉक्टर मेरी बेस्ट का मानना है कि यह समस्या मस्तिष्क के एक सर्किट के ग़लत ढंग से काम करने के कारण होती है.वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि यह ख़राबी मस्तिष्क के एक न्यूरोट्रांस्मीटर में असंतुलन की वजह से पैदा होती है.इस समस्या की पहचान से अब इसके इलाज की संभावनाएं भी खुलती नज़र आ रही हैं।

विवादास्पद शोध


यहशोध प्रोसीडिंग्स ऑफ़ दी नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंसेस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई है.इस शोध के निष्कर्ष आईईडी से प्रभावित 22 मरीज़ों के परीक्षण के आधार पर निकाले गए हैं.मगर ब्रिटेन के क्लीनिकल न्यूरोसाइंस रिसर्च सेंटर, डैटफ़र्ड के डॉक्टर तन्मय शर्मा का कहना है कि इस शोध के नतीजे उत्साहवर्धक हैं लेकिन इस के लिए अन्य परीक्षणों की भी आवश्यकता है.उनका कहना है कि चिलड्रेन्स हॉस्पिटल ऑफ़ फ़िलेडेल्फ़िया के वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क के काम करने के तरीकों की जांच के लिए अप्रत्यक्ष मापदंड अपनाए हैं. उनकी राय में इस शोध की पुष्टि के लिए मस्तिष्क इमेजिंग तकनीक का इस्तेमाल करने की आवश्यकता है.डॉक्टर शर्मा इस बात पर भी बल देते हैं कि अमरीकी शोधकार्य में शामिल मनोरोगियों के मस्तिष्क में सेरोटॉनिन जैसे रासायन का असंतुलन था या नहीं यह तय करने के लिए जैव-रासायनिक परीक्षणों की भी आवश्यकता है.

ऑटिज्म

ऑटिज्म एक मानसिक रोग है जिसके लक्षण जन्म से या बाल्यावस्था से ही नज़र आने लगते है। जिन बच्चो में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चो से असामान्य होता है। बाल्यावस्था में सामान्य बच्चो एवं ऑटिस्टिक बच्चो में कुछ प्रमुख अन्तर होते है जिनके आधार पर इस अवस्था की पहचान की जा सकती है जैसे:-
१.सामान्य बच्चें माँ का चेहरा देखते है और उसके हाव-भाव समझने की
कोशिश करते है परन्तु ऑटिज्म से ग्रसित बच्चे किसी से नज़र मिलाने से कतराते है।
२.सामान्य बच्चे आवाजे सुनने के बाद खुश हो जाते है परन्तु ऑटिस्टिक बच्चे आवाजों पर ध्यान नही देते।
३.सामान्य बच्चे रे-धीरे भाषा ज्ञान में वृद्धि करते है परन्तु ऑटिस्टिक बच्चे बोलने के कुछ समय बाद अचानक ही बोलना बंद कर देते है तथा अजीब आवाजें निकलतें है।
४.सामान्य बच्चे माँ के दूर होने पर या अनजाने लोगो से मिलने पर परेशान हो जाते है परन्तु ऑटिस्टिक बच्चे किसी के आने-जाने पर परेशान नही होते .....आगे के लिए यहाँ क्लिक करे।

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